वो दिन याद आते हैं
वो बचपन का सावन वो बारिश का पानी
वो मस्ती ठिठोली वो थोड़ी शैतानी
वो भालू का खेला वो गलियों का मेला
बस वो दिन याद आते हैं
वो थोड़ा सा बोलना थोड़ा तुतलाना
वो खुद भी हँसना वो सबको हँसाना
वो लड़ना झगड़ना बहुत बाते करना
बस वो दिन याद आते हैं
वो स्कूल के नाटक वो रेल का फाटक
वो घर देर से आना बहाने बनाना
वो मम्मी की डॉटे वो पापा के चॉटे
बस वो दिन याद आते हैं
किताबों मे रख के वो कॉमिकसे पढ़ना
मंदिर की बगिया के पेड़ो पे चढ़ना
वो दोस्तों की बर्थडे पार्टी मनाना
वो पिकनिक मनाने डियर पार्क जाना
बस वो दिन याद आते हैं
वो साइकिल से सारा शहर घूम आना
मुहल्ले मे थोड़ा समझदार होना
वो पढ़ने मे भी थोड़ा होशयार होना
वो सबका चहेता सदा बनके रहना
बस वो दिन याद आते हैं
अब तो हैं बस वो बचपन की बातें
वो धुंधली सी प्यारी सी मीठी सी यादे
नही लौट सकते हैं दिन वो पुराने
खो गये वो सारे सपने सुहाने
अब बस वो दिन याद आते हैं
Tuesday, December 27, 2011
Tuesday, December 6, 2011
हम भी उस पर मरते हैं
फूलो से भी नाज़ुक है वो कोमल है जैसे मोती
देखा उसको तो जाना सुंदरता है क्या होती
धीरे धीरे हँसती है जब,फूल कही पर झड़ते हैं
शायद उसको पता नही कि हम भी उस पर मरते हैं
सामने से आ जाती है तब हम तोड़ा शरमाते हैं
उसके वाले रस्तो पर हम अपनी आँख बिछाते हैं
वो धीरे से हँसती है तब हम भी कुछ मुस्काते हैं
लेकिन वो क्या जाने हम तो उस पर जान लुटाते हैं
उससे बातें करता हूँ तब साथी मेरे जलते हैं
उनको भी ये पता चला है हम भी उस पर मरते हैं
कुछ वो सुनना चाहती है और कुछ मॅ कहना चाहता हूँ
क्या होगा ये सोच सोच कर मन ही मन घबराता हूँ
गड़बड़ ना हो जाए कही कुछ इससे तो हम डरते हैं
कैसे उसको पता चले कि हम भी उस पर मरते हैं
सबसे नज़र बचाकर जब हम उससे नज़र मिलाते हैं
उसके सन्गी साथी सारे मिलकर हमे चिढ़ाते हैं
दिन तो कट जाता है पर रातें ना कट पाती हैं
सपने मे वो आएगी ये सोच के हम सो पाते हैं
अब तो सारे दोस्त हमारे हमको पागल कहते हैं
कैसे उसको पता चले की हम भी उस पर मरते हैं
फिर मैने सोचा कि एक दिन खुद ही उस से बात करू
नही समझ मे मेरी आया कैसे मॅ इज़हार करूँ
फिर मैने सोचा शायद वो खुद ही मुझसे बोलेगी
अपने दो होठो के पट एक ना एक दिन तो खोलेगी
लेकिन ऐसा हुआ नही हम इस दुनिया से चलते हैं
शायद उसको पता चले की हम भी उस पर मरते हैं
देखा उसको तो जाना सुंदरता है क्या होती
धीरे धीरे हँसती है जब,फूल कही पर झड़ते हैं
शायद उसको पता नही कि हम भी उस पर मरते हैं
सामने से आ जाती है तब हम तोड़ा शरमाते हैं
उसके वाले रस्तो पर हम अपनी आँख बिछाते हैं
वो धीरे से हँसती है तब हम भी कुछ मुस्काते हैं
लेकिन वो क्या जाने हम तो उस पर जान लुटाते हैं
उससे बातें करता हूँ तब साथी मेरे जलते हैं
उनको भी ये पता चला है हम भी उस पर मरते हैं
कुछ वो सुनना चाहती है और कुछ मॅ कहना चाहता हूँ
क्या होगा ये सोच सोच कर मन ही मन घबराता हूँ
गड़बड़ ना हो जाए कही कुछ इससे तो हम डरते हैं
कैसे उसको पता चले कि हम भी उस पर मरते हैं
सबसे नज़र बचाकर जब हम उससे नज़र मिलाते हैं
उसके सन्गी साथी सारे मिलकर हमे चिढ़ाते हैं
दिन तो कट जाता है पर रातें ना कट पाती हैं
सपने मे वो आएगी ये सोच के हम सो पाते हैं
अब तो सारे दोस्त हमारे हमको पागल कहते हैं
कैसे उसको पता चले की हम भी उस पर मरते हैं
फिर मैने सोचा कि एक दिन खुद ही उस से बात करू
नही समझ मे मेरी आया कैसे मॅ इज़हार करूँ
फिर मैने सोचा शायद वो खुद ही मुझसे बोलेगी
अपने दो होठो के पट एक ना एक दिन तो खोलेगी
लेकिन ऐसा हुआ नही हम इस दुनिया से चलते हैं
शायद उसको पता चले की हम भी उस पर मरते हैं
Monday, November 14, 2011
पूर्वोत्तर भी हमारा ही है
हमारे देश का एक हिस्सा है जिसे हमपूर्वोत्तर कहते हैं,जहाँ असम,मणिपुर,मेघालय,सिक्किम,मिजोरम,अरुणाचल और नगालेंड आते हैं,इनमे असम के अलावा बाकी नाम शायद कभी हमसुन पाते हैं,प्रकर्ती ने इन राज्यों को असीम सुंदरता प्रदान की है लेकिन शायद हम वहाँ जाना चाहे ,इन राज्यो का नाम हम खबरो मे सुनते हैं तब जब चीन अरुणाचल पर अपना दावा जताता है,सिक्किम मे भूकंप आता है ,लेकिन हमे नही पता होता
की वही का एक राज्य मणिपुर महीनो तक देश से कटा रहता है वो भी अलगाववादियो की नाकेबंदी की वजह से ,नागालेंड और मिजोरम मे आतंकी समान्तर सरकार चला रहे हैं और केंद्र सरकार उनसे शांति समझौता करके खुश हो जाती है,और देश के एक बहुत बड़े हिस्से ने मेघालय का नाम तो शायद ही सुना हो,पूर्वोतर के लोग अगर हमे कही दिखते हैं तो हम उन्हे हिन्दुस्तानी कम चीनी ज़्यादा समझते हैं और उसके बाद भी हम समझते हैं की सारा भारत एक है,पूर्वोत्तर को हम अपने एक भौगोलिक हिस्से से ज़्यादा कुछ नही समझते,हमे पता होना चाहिए की जिस तरह उन्हे देश के बाकी हिस्सो मे अलग से देखा जाता है,वैसे ही अपने राज्यो मे वो भी हमे विदेशी की तरह देखते हैं,मुझे याद है पूर्वोत्तर की एक महिला पहलवान के आँसू जब हरियाणा मे एक प्रतियोगिता के दौरान खुद को चीनी कहे जाने पर रो पड़ी थी,उस खिलाड़ी की यही पीड़ा थी की उन्हे बाकी हिन्दुस्तानियो की तरह क्यो नही देखा जाता
दिल्ली की सरकार का सिर्फ़ इतना नही है की वो राज्यो को केंद्रीय सहायता केनामपर पैसे देती रहे बल्कि देश के नागरिको को इस बात का भी अहसास कराए की वो भी इसी देश के नागरिक हैं चाहे वो देश के किसी भी हिस्से मेरहते हो,देशके नेताओ को भी सोचना चाहिए की अगर पूर्वोत्तर मे ज़्यादा वोट नही हैं,तो इसका मतलब ये नही की हम उनके बारे मे सोचना बंद कर दे,देश के मीडिया की भी यह ज़िम्मेदारी है की वो देश के बाकी हिस्से को भी प्रतिनिधित्व दे
की वही का एक राज्य मणिपुर महीनो तक देश से कटा रहता है वो भी अलगाववादियो की नाकेबंदी की वजह से ,नागालेंड और मिजोरम मे आतंकी समान्तर सरकार चला रहे हैं और केंद्र सरकार उनसे शांति समझौता करके खुश हो जाती है,और देश के एक बहुत बड़े हिस्से ने मेघालय का नाम तो शायद ही सुना हो,पूर्वोतर के लोग अगर हमे कही दिखते हैं तो हम उन्हे हिन्दुस्तानी कम चीनी ज़्यादा समझते हैं और उसके बाद भी हम समझते हैं की सारा भारत एक है,पूर्वोत्तर को हम अपने एक भौगोलिक हिस्से से ज़्यादा कुछ नही समझते,हमे पता होना चाहिए की जिस तरह उन्हे देश के बाकी हिस्सो मे अलग से देखा जाता है,वैसे ही अपने राज्यो मे वो भी हमे विदेशी की तरह देखते हैं,मुझे याद है पूर्वोत्तर की एक महिला पहलवान के आँसू जब हरियाणा मे एक प्रतियोगिता के दौरान खुद को चीनी कहे जाने पर रो पड़ी थी,उस खिलाड़ी की यही पीड़ा थी की उन्हे बाकी हिन्दुस्तानियो की तरह क्यो नही देखा जाता
दिल्ली की सरकार का सिर्फ़ इतना नही है की वो राज्यो को केंद्रीय सहायता केनामपर पैसे देती रहे बल्कि देश के नागरिको को इस बात का भी अहसास कराए की वो भी इसी देश के नागरिक हैं चाहे वो देश के किसी भी हिस्से मेरहते हो,देशके नेताओ को भी सोचना चाहिए की अगर पूर्वोत्तर मे ज़्यादा वोट नही हैं,तो इसका मतलब ये नही की हम उनके बारे मे सोचना बंद कर दे,देश के मीडिया की भी यह ज़िम्मेदारी है की वो देश के बाकी हिस्से को भी प्रतिनिधित्व दे
Monday, August 22, 2011
अरेंज मॅरिज
एक दिन एक ब्लॉग पढ़ रहा था उसमे अरेंज मॅरिज को अरेंज करने की कुछ परेशानियो के बारे मे पढ़ रहा था लेखिका ने अपने लेख मे एक लड़की के पिता को अपनी बेटी के लिए योग्य वर खोजतेसमय की कुछ बातो का बड़ी अच्छी तरह से ज़िक्र किया ,लेकिन कुछ बाते ऐसी हैं जहा हम पूर्वाग्रहो से ग्रस्त होते हैं जहा लड़किया ये मानकर चलती हैं की उनका होने वाला जीवन साथी का पिछला जीवन सॉफ सुथरा हो ,वो अच्छा पढ़ा लिखा हो अच्छा कमाता हो ,देखने मे अच्छा हो ,वही लड़के भी चाहते हैं की आज के माहॉल के हिसाब से लड़की इतनी सुंदर हो की लोग बस देखते रह जाएँ ,पिछला रेकॉर्ड उसका बिल्कुल सॉफ हो अच्छी पढ़ी लिखी हो अगर नौकरी भी हो तो और अच्छा वरना लड़की के पिताजी तो देंगेही अपनी बेटी के लिए,इस तरह की सोच दोनो तरफ है हम आजकल अरेंज मेरिज कहते ज़रूर हैं पर हम ये सब जानते हैं की अब अरेंज मेरिज
कितनी प्रॅक्टिकल हो गयी है,लड़का और लड़की दोनो एक दूरे को अपनी उस योग्यता सूची से मिलातेहैं जो उन्होने अपने जीवन साथी के लिए बना रखी है
बस फ़र्क ये होता है की लवमैरिज की तरह लड़के लड़की एक दूसरे को उतना नही जानते, मॅआज भी ये सुनता हूँ
की कही किसी लड़की के लिए अच्छा लड़का नही मिल पा रहा तो कही किसी
लड़के के लिए अच्छी लड़की नही मिल पा रही ,हमने रिश्तो की परिभाषए बदल दी हैं,आज हम पति या पत्नी नही खोजते हम चाहते हैं हमे कोई ऐसा मिले जो हमारी उन इच्छाओ को पूरा करने मे हमारी मदद करे जो हम अकेले नही कर सकते,
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