Wednesday, September 29, 2010

मर्यादा तो भूल गये हम

अभी कुछ दिन पहले की बात है समाचार के खबर सुनी कि मेट्रो ट्रेन मे लड़कियो के साथ छेड़खानी कि बढ़ती घटनाओ कि वजह से उनके लिए एक बोगी आरक्षित कर गयी तो लगा कि जिस देश मे कन्याओं कि पूजा होती हो वहा स्थिति इस हद तक आ गयी है लगता है जैसे हम अपनी मर्यादाओ को भूल गये हैं अचानक साल पहले कि एक घटना याद आ गयी जब दिल्ली विश्वविधयालय मे उत्तर पूर्व कि लड़कियो के साथ छेड़ छाड़ कि बढ़ती घटनाओ पर वहा तत्कालीन कुलपति ने लड़कियो को मर्यादित कपडे पहनने कि सलाह दी तो लड़कियो ने ये कहते हुएविरोध किया कि अगर वो कपड़े न पहने तो क्या ये किसी को उनसे छेड़छाड़ या बदतमीजी का अधिकार दे देता है ,तर्क के आधार पर लड़कियो कि बात सही लगती है लेकिन तभी महसूस हुआ कि भारत अब उस दौर मे प्रवेश कर् चुका है ज़हॉ हमारे बडे हमे मर्यादा मे रहने को कह भी नही सकतेगती हैलेकिन तभी महसूस हुआ कि भारत अब उस दौर मे प्रवेश कर् चुका है ज़हॉ हमारे बडे हमे मर्यादा मे रहने को कह भी नही सकतेअगर आज किसी लड़की का ब्यायफ़्रेंड नही है तो उसे पुराने ख़यालो वाली माना जाता है और अगर कोई लड़का लड़कियो को नही घूरता तो उसे असामान्य माना जाता है पश्चिम कि नकल करने मे हम इतना आगे निकल चुके हैं कि किसी का मर्यादित व्यवहार हमे दकियानूसी या असामान्य नज़र आता है ,एक बार एक लड़की पर कमेंट करने वाले लड़के से मैने पूछा कि उसने ऐसा क्यो किया तो उसका जबाब था कि उस लड़की ने कपड़े ही ऐसे पहन रखे थे ,बड़ा अजीब लगा कि किसी के कपड़े आपको उस पर कमेंट करने का अधिकार दे देते हैं क्याएक समय था जब हमारे बड़े हमे कुछ कहते थे और हम सिर झुकाकर वो मान लेते थे लेकिन आज हमने बडो को संवैधानिक राषॄट्रपति का दरज़ा दे दिया है ज़ैसे वो सबसे बड़ा पद है लेकिन उसकी बात मानना जरूरी नही ,वही हाल हमारी युवा पीढी का है क़ोई कुछ भी क़हे करेंगे तो हम वही जो हमारे मन मे है,दिल्‍ली से सटे गुड़गाव मे आप देखिये कुछ हो ना हो पर हर थोडी दूर पर शराब कि देर रात तक खुली रहने वाली दुकाने और वहा लगा रहने वाला मेरे देश के युवाओंओ का ज़मघट ज़रूर मिल ज़ायगा ,देश के बड़े और आधुनिक होते शहरो मे युवक युवतिया आपको वो सारी वर्जनाए तोड़ते हुए मिल जाएँगे ज़िनहे कभी हम मर्यादा कहा करते थे

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