Monday, September 16, 2019


बेचैनी

कुछ बेचैनी सा आलम है,चुपचाप रहा नहीं जाता है
किससे बोलें दिल की बातें अब और सहा नहीं जाता है
कोई अपना सा ढूंढ़ता हूँ इस बेगानी सी महफ़िल में
इस भीड़ में बस अब हर चेहरा अनजान नजर सा आता है
कोई तो हो जो ये कह दे ,मैं साथ तेरे हर हालत में
सुनने को इन शब्दों को ये दिल तरस सा जाता है
हर शख्स अकेला खड़ा यहाँ ,ये भरी-भरी सी बस्ती है
साथ में आने वाला पूछे बता तेरी क्या हस्ती है
मन में हो चाहे व्यथा भरी ,हर शख्स यहाँ मुस्काता है
गम अपना हल्का करने ,साकी को गले लगाता है
पर कुछ ऐसे लोग यहाँ जो ये भी न कर पाते हैं
अंदर अंदर घुटते रहते फिर दुनिया से चले जाते हैं

Friday, January 3, 2014

तेरा साथ

अनन्त यह गगन है अपार यह जमीन है 
साथ हो जो तेरा फिर कुछ नहीं कमी है 
जीवन की यह डगर है पथरीली और कंटीली 
तेरा ही संग है ये जो जिंदगी हसीन है 

दुश्वारियाँ बहुत हैं जिंदगी के इस सफर में 
लम्हे वो खूबसूरत मिलते ही यहाँ कम हैं 
गर कोई हो अकेला इस लंबे फासले में 
खुशियों को भूल जाओ यहाँ फैले हुये गम हैं 

चुनती है सारी दुनिया बस साफ सुथरे रस्ते 
पथ हम वही पकड़ते हैं इंसान जहां फंसते 
कुछ हम अजीब हैं कुछ है अजीब आदत 
हमको वही पसंद है जिससे लोग सब हैं बचते 

हर राह वो पकडना जो सीधी नहीं जाती 
है बेबकूफी अपनी पर हम इसी के आदी 
सीधा ना कुछ पसंद है पर सीधे बहुत हम हैं 
ऊंची ही बात सोचें पर करते बत सादी 


विश्वास है ये अपना तू संग ही रहेगा 
फंस जाऊं जो कहीं पे आवाज दे कहेगा 
ना मानना कभी बस अपने को अकेला 
जो भी मिलेंगे सुख दुख वो साथ में सहेगा 



वक़्त

बचपन का वो जमाना,था बड़ा सुहाना
छोटी सी बात पर वो बड़ा सा रूठ जाना
वो जिद पकड़ के रहना और गुस्सा भी दिखाना

वो सारी बातें करना पर कुछ भी ना बताना
क्या दौर था निराला क्या लोग थे वो प्यारे
हर पल ही साथ रहते जब संगी साथी सारे
वो साथ लिखना पढ़ना वो साथ घूम आना
एक छोटी सी वो दुनिया थी पास में हमारे

फिर कुछ हुये बड़े हम कुछ जिम्मेदारी आयी
वो बंद हुई शरारत कुछ फासले वो लायी
वो बोलना हुआ कम ,चुप रहने लगे ज्यादा
लोगों ने समझा अब कुछ समझदारी आयी

फिर वक़्त और बदला तकनीक नयी आयी
दूरियाँ घटीं कुछ दुश्वारियाँ बढ़ाईं
दुनिया ये हो गयी है अब व्यस्त कुछ जी ज्यादा
ना वक़्त है किसी पर ना है कोई इरादा

वो जो हैं ये समझते,वो कीमती बहुत हैं
कीमत है उनकी तब तक जब जौहरी यहाँ हम हैं
जो हम बदल गये तो कहती फिरेगी दुनिया
तुम्ही बचे थे एक बस बदलाव जहां कम हैं

सब लोग हैं ये कहते बदलाव जिंदगी है
पर अपना फलसफ़ा है विश्वास जिंदगी है
बस एक यही है कारण जो हम नहीं बदलते
तुम चाहे चले जाओ इन्तेजार हम हैं करते

Friday, August 24, 2012

ए मुल्क तेरे हालात पर बस मुझको रोना आया

कहीं ग़रीबी कहीं भुखमरी कहीं पे फैली बेकारी
सब कुछ सहते कुछ ना कहते कैसी है ये लाचारी
आज ये चारों ओर यहाँ सन्नाटा है क्यों छाया
ए मुल्क तेरे हालात पर बस मुझको रोना आया
सुलग रहा पंजाब है फिर से बैठा असम अंगारो पर
देते लोग दिलासा कहते आता तरस बेचारों पर
पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण फिर वही गदर मचाया
ए मुल्क तेरे हालात पर बस मुझको रोना आया
नहीं सहेंगे चुप ना रहेंगे सदियों से कहते आए
धीरे धीरे कटता रहा तू हम बस इतना भारत पाए
तेराचीर हरण रोके जो फिर ना वो भगवान आया
ए मुल्क तेरे हालात पर बस मुझको रोना आया
सत्ताधारी बैठे अंधे ये जनता बेगानी है
अब भी हुए ना एक अगर तो मात तुम्ही को खानी
हैटुकड़े-टुकड़े हो जाओगे दौर वही फिर से आया
ए मुल्क तेरे हालात पर बस मुझको रोना आया

Saturday, June 2, 2012

फिल्मों का समाज या समाज की फ़िल्मे

एक दिन राजकपूर की एक फिल्म देख रहा था जिसमे एक सीधा साधा नौजवान बी की डिग्री जेब मे रखे हुए नौकरी की तलाश मे घूमता है,फुटपाथ पर सोने वालो और झुग्गी झोपड़ी मे रहने वालो के साथ रहता है उनके पास रहना खाने के लिए कुछ अच्छा हो या ना हो पर एक दूसरे के गम बाँटने के लिए एक अच्छा दिल ज़रूर होता है ,फिल्म मे उस ग़रीब भारत की तस्वीर भी दिखाई देती है जिसे अब देखना नही चाहते और समाज का आईना कही जाने वाली फ़िल्मे उसे दिखाना पसंद नही करती,हीरो एक लड़की से मिलता है कुछ ना होते हुए सिर्फ़ अपनी बातो से लड़की को इंप्रेस करना चाहता है उसे बताता है की वो आवारा तो है पर अनपड़ नही ,लड़की उसे पसंद करने लगती है ,हीरो उसे फुटपाथ पर चाय पिलाता है जिसके पैसे भी लड़की ही देती है और दोनो अपने प्यार को स्वीकार करते हैं ,हीरो अमीर बनने के लिए धोखाधड़ी के तरीके अपनाता है पैसा कमाता है पर वो प्यार नही पा पाता और अंत मे वापस सब कुछ छोड़ कर वही सीधा साधा नौजवान बनकर जाने लगता है तो उसका प्यार उसे अपनाता है कहानी का अंत हो जाता है कुल मिलाकर एक ग़रीब भारत का ग़रीब हीरो जो उसी हिन्दुस्तान का प्रतिनिधि है जो असलियत मे है फिल्म एक आम आदमी की कहानी दिखती है जहा ग़रीबी है पर लोगो के बीच एक अपनापन है एक दूसरे के दर्द समझने का अहसास है ,दूसरी तरफ देखता हू तो आज की फ़िल्मे हैं जहा हीरो हेरोइन करोड़पति होते हैं फ़िल्मो मे होता है तो उनका रोमांस बस उन्हे इस समाज से कोई मतलब ही नही होता आज हीरो या तो एक दबंग पुलिस वाला होता है जिसे सिस्टम से कोई मतलब नही सही ग़लत का फ़ैसला वो खुद करता है,या किसी अरबपति परिवार का लड़का जिसे किस चीज़ की कोई चिंता ही नही होती,या एक बड़ा अपराहदी जो कन्नों तोड़ता है लेकिन उसका कोई कुछ नही बिगाड़ सकता ,हीरोइन भी अब वो सुंदर और सुशील वाला चोला उतार चुकी है अब लड़की का सेक्सी,स्टाइलिश होना ज़रूरी है वो पुरानी फ़िल्मो की संस्कारवान्न लड़की तो अब पर्दे से गायब हो चुकी है फ़िल्मे अब करोड़ो का नही अरबो का कारोबार करती हैं लेकिन क्या वो उस समाज का प्रतिनिधित्व करती हैं जिसके लिए उन्हे बनाया जाता है शायद नहि यब वो दिन पुराने हो गये जब फ़िल्मे समाज का आईना हुआ करती थी