Monday, September 16, 2019


बेचैनी

कुछ बेचैनी सा आलम है,चुपचाप रहा नहीं जाता है
किससे बोलें दिल की बातें अब और सहा नहीं जाता है
कोई अपना सा ढूंढ़ता हूँ इस बेगानी सी महफ़िल में
इस भीड़ में बस अब हर चेहरा अनजान नजर सा आता है
कोई तो हो जो ये कह दे ,मैं साथ तेरे हर हालत में
सुनने को इन शब्दों को ये दिल तरस सा जाता है
हर शख्स अकेला खड़ा यहाँ ,ये भरी-भरी सी बस्ती है
साथ में आने वाला पूछे बता तेरी क्या हस्ती है
मन में हो चाहे व्यथा भरी ,हर शख्स यहाँ मुस्काता है
गम अपना हल्का करने ,साकी को गले लगाता है
पर कुछ ऐसे लोग यहाँ जो ये भी न कर पाते हैं
अंदर अंदर घुटते रहते फिर दुनिया से चले जाते हैं

No comments:

Post a Comment