Tuesday, May 22, 2012

वो

कभी कभी ऐसे लोग मिलते हैं जो कहते हैं वो अपने हिसाब से अपनी जिंदगी जीते हैं लेकिन अपने हिसाब से जिंदगी जीना इतना आसान होता है क्या ,एक बच्चा जब छोटा होता है तो मां बाप और परिवार की उम्मीदों का बोझ उस पर डाल दिया जाता है हमारे समय मे तो ये कम था आजकल कुछ ज़्यादा ही हो गया है ,जब वो थोड़ा बड़ा हुआ तो उसे बड़ा समझदार माना जाने लगा समझदार होने का मतलब दूसरों से ज़्यादा ज़िम्मेदार होना बचपन से उसने अपने आप को हर काम के लिए ज़िम्मेदार बना लिया वो सोचने लगा कि वो सबकी ग़लतियाँ संभाल सकता है बस उससे कोई ग़लती नही होनी चाहिए इस डर से वो हर कदम बड़ा सोच समझकर रखता रहा ,बल्कि हर वो चीज़ करता रहा जिसमे सब खुश हों हमेशा दोस्तों और परिवार के बारे मे सोचने के बाद अपने बारे मे तो वो सोचना ही भूल गया ,सबको ये बात पता भी थी और सब उसका ध्यान भी रखते सब उससे कहते अपने बारे मे सोच लेकिन वो कभी अपने बारे मे सोच ही नही पाया लेकिन कभी कभी उसे लगता की कोई हो जो उसके बारे मे भी सोचे वैसे तो उसके दोस्त और परिवार वाले सब उसके बारे मे सोचते वो हमेशा सबसे बात करता पर शायद ऐसा कोई चाहता जो उससे बात करना चाहे ,वो सबको फ़ोन करके पता करता की सबकी जिंदगी मे सब कुछ सही चल रहा है या नही सबको ये अहसास दिलाता की जब तक वो है कोई अकेला नही लेकिन वो भी चाहता की उसे भी ये अहसास दिलाने वाला कोई होना चाहिए वो अपने सपने दूसरों मे देखता रहा जो वो नही कर पाया वो दूसरो को करता देख खुश होता लेकिन सपने तो बस सपने होते हैं वो सबके लिए था पर पता नही उसके लिए भी कोई बना या नही कोई नही जो उससे कहे मैं हूँ ना, बस वो उस पल का इंतेजार करता लेकिन तभी लगता कि कोई नहीं है जो उसे समझ सके

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