Sunday, May 23, 2010

जाति ना पूछो साधु की

कभी एक दोहा पढ़ा करते थे,जाति ना पूछो साधु की लेकिन स्कूल मे अध्यापक और दोस्तो के घर पर उनके घर वाले पूछ ही लेते थे बेटा तुम्हारी जाति क्या है,वरना पूरा नाम ही पूछ लेते थे बाद मे समझ मे आया की की हमारा पूरा नाम ही तो हमारी जाति बताता है मंडल कमंडल का दौर आया तो कभी धर्म जाति पर तो कभी जाति धर्म पर भारी पड़ने लगे अचानक पिछड़ो को अपनी ताक़त का अहसास होने लगा मुलायम और लालू जैसे समाजवादी अचानक जातियो के दम पर बड़े नेता बन गये लेकिन कमण्डल के जादू ने इन्हे कभी इनके प्रदेशो से बाहर नही निकालने दिया तो इन्होने भी अपराजेय बन रहे कमण्डल को रोके रखा ,उत्तर प्रदेश मे तो पिछड़ो का नेतरत्व पूरी तरह से कल्याण और मुलायम के बीच बँट गया ,धीरेधीरे कमंडल की चमक फीकी पड़ती चली गयी और पिछड़े भी अब यादव ,कुर्मी,लोध,कुम्हार ,जाट मे बँटते चले गये ,आरक्षण पिछड़ो को तो मिला पर उसका लाभ सिर्फ़ उन्ही जातियो को मिल पाया जिनके नेता सत्ता मे थे और बाकी जातिया पिछड़ी की पिछड़ी ही रह गयी हर जाति अपनी गिनती बढ़ा चढ़कर बताती है इस जनगणना के बाद सबकी गिनती भी पता चल जाएगी ,चाहे बात अनुसूचित जातियो के आरक्षण की बात हो या पिछड़ी जातियो के उसका लाभ सिर्फ़ कुछ ही जातियो को मिल पाया आज भी एक बड़ा तबका पिछड़ा ही है अगर जाति के आधार पर जनगणना की बात हो रही है तो क्यो हो हल्ला मचाया जा रहा है इससे कम से कम हर जाति की संख्या और उसकी आरक्षण मे भागीदारी भी पता चल जाएगी ,जो जातिया आरक्षण के लिए बात बात पर सड़को पर उतर आते हैं उनको आरक्षण की ज़रूरत भी पता चल जाएगी

Saturday, May 1, 2010

ग़रीबो की सुनो

कभी सपेरो,जादुगरो का देश कहा जाने वाला भारत आज विश्व की एक बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है,जहा लाखो की सैलरी पाने वाला
एक बड़ा वर्ग है ,बड़े बड़े शॉपिंग माल हैं,मल्टीप्लेक्स हैं,महँगी गाड़ियाँ हैं , बड़ी बड़ी पार्टियाँ जिनमे लाखो रुपये की शराब बहायी जाती है,कुल मिलाकर हर वो सुविधा है जो कभी पश्चिम के देशो मे हम देखा करते थे मतलव ये कि हमारा भारत भी अब विकसित देश बनने जा रहा है माफ कीजिये ये हमारा भारत नही ये तो कुछ फीसदी लोगों का चमचमाता इंडिया है हमारा भारत तो आज भी उसी हालात मे है बल्कि शायद उससे भी बदतर पहले हम कम कमाते थे पर चैन से रहते थे कही किसानो की ज़मीन नही छीनी जाती थी ,ग़रीबी की रेखा से नीचे जीने वाले लोग भी कम से कम जी तो लेते थे ,सरकार भी ग़रीबो के दम पर और ग़रीबो के लिए सोचने वाली होती थी अब ग़रीबो के लिए सोचने का वक़्त ही नही किसी के पास, बड़ी औध्योगिक इकाइयो के लिए ज़मीन से लेकर हर सुविधाए मुहैया कराई जा रही हैं जनता के चुने हुये नुमाईन्दो के लिये जनता कि कमायी पानी कि तरह बहायी जा सकती है पर ग़रीबो को कुछ किलो ज़्यादा राशन देना सरकार का बजट बिगाड़ सकता है , मध्यम वर्ग की कमर तोड़ने वाले कर लगाए जा सकते हैं मगर करोड़ो अरबो रुपये के खेल वाले आई पी एल से आप वसूली नही कर सकते,अगर ये सब ऐसे ही चलता रहा तो वो दिन दूर नही जब हमारा भारत और कुछ लोगो के इंडिया के बीच का फ़र्क इतना बढ़ जाएगा जिसे दूर करना असंभव होगा