Thursday, April 29, 2010

नक्सलवाद का दंश

नक्सल वाद पर आज एक बहस का दौर चल निकला है समर्थक जहा इसे ग़रीबो आदिवासीयो और शोषित वर्ग के हितो की लड़ाई बता रहे हैं वही विरोधी इसे देश के विरुध एक युध्ह बता रहे हैं लेकिन दोनो मे से कोई भी सच समझने को तय्यार नही है नक्सल वाद के समर्थक ये क्यो भूल जाते हैं जिन लोगो का देश के लोकतंत्र मे कोई विश्वास नही है ,जिनका मकसद सिर्फ़ बंदूक के दम पर सत्ता परिवर्तन करना है जो लोग बाते तो ग़रीबो और शोषित वर्ग की करते हैं लेकिन खुद उनके पढ़ने के लिए बनाए गये स्कूलो को बम से उड़ा देते हैं,ना वाहा सड़के बनाने देते हैं ना रोज़गार के लिए किसी योजना को चलने देते हैं ना उन ग़रीबो तक स्वास्थ सेवाए पहुचने देते हैं वो बात ग़रीबो की नही करते वो तो चाहते हैं की ये ग़रीबी और ये पिछड़ापन बना रहे ताकि इनकी समान्तर सता चलती रहे अगर ये ग़रीबो के हितैषी ही हैं तो कैसे झारखंड मे (जहा ये इतनी ताक़त मे हैं की विधायक से लेकर सांसद तक को मार देते हैं)ग़रीबो के पैसे को नेताओ ने अपनी मर्ज़ी से लूटाया लेकिन इनकी दुश्मनी उनसे नही क्योकि वो तो इन्हे पैसा खिलाते रहे और खुद खाते रहे इनकी दुश्मनी को उन जवानो से है जो देश के लिए लड़ने की कसम खाते हैं फिर चाहे उन्हे किसी से भी लड़ना पड़े ,अपने आप को शोषित वर्ग की आवा ज कहने वाले ये सिर्फ़ समाज विरोधी हैं ,और एक तरफ हैं नक्सल वाद के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई की माँग करने वाले ये सही है की इन पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए लेकिन क्या जिन माँगो के लिए ये लोग अपनी लड़ाई को जायज़ ठहरा रहे हैं उसके बारे मे सोचा जा रहा है क्यो बड़ी औध्योगिक परियोजनाओ के नाम पर आदिवासीयो और किसानो को उजाड़ा जा रहा है अगर ये सब कुछ विकास के नाम पर हो रहा है तो क्यो देश मे ३७% लोग आज ग़रीबी की रेखा से नीचे पहुच गये ,देश की नितिनिर्माताओ को सोचना चहाइए की उनकी नीतिया देश ई ९०% आबादी के लिए हैं या सिर्फ़ १०% लोगो के लिए .